Team uklive
देहरादून : उत्तराखंड में फिर से सियासी हलचल की बड़ी खबर आ रही है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। अब वह राज्यपाल से मुलाकात कर उन्हें अपना इस्तीफा सौंपेंगे। वह दिल्ली देहरादून पहुंच चुके हैं। साथ ही उन्होंने राज्यपाल से समय मांगा है। पहले कहा जा रहा था कि वह कल राज्यपाल से मिलेंगे, लेकिन आज ही रात उनके राज्यपाल से मिलकर इस्तीफा देने की संभावना है। हालांकि राज्यपाल नैनीताल में हैं, ऐसे में कल ही मुलाकात की संभावना जताई जा रही है।
इससे पहल मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने दिल्ली दौरे के तीसरे दिन सारे कयासों पर विराम लगाने का प्रयास किया, लेकिन उनके दिल्ली दौरे के कई मायने निकाले जा रहे हैं। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने दिल्ली में मीडिया से कहा कि उनकी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से विकास कार्यों को लेकर मुलाकात हुई। तेजी से उत्तराखंड में विकास कार्यों को बढ़ाया जाएगा। सियासी संकट को लेकर उठे सवालों में उन्होंने विपक्ष को लेकर कुछ नहीं कहा। उन्होंने कहा कि केंद्र ने जो कहा है उसे करेंगे। उसी हिसाब से बढ़ेंगे। साथ ही उन्होंने कहा कि उपचुनाव का मसला चुनाव आयोग को देखना है। इस बीच सीएम तीरथ सिंह रावत दिल्ली से देहरादून के लिए रवाना हो गए हैं।सूत्रों से खबर आई कि आज पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की और अपना इस्तीफा उन्हें सौंप दिया था। अब देहरादून में कल ही विधानमंडल की बैठक हो सकती है। इसमें नया नेता चुनने की औपचारिकता होगी। हालांकि नए नेता के नाम पर केंद्रीय नेताओं की ओर से मुहर लगनी है। वहीं, पिछले तीन दिन से ही पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं। ऐसे में नए सीएम को लेकर उनके साथ ही धन सिंह रावत के नाम की चर्चा है।
ये फंसा तकनीकी पेंच
उत्तराखंड में गंगोत्री और हल्दवानी विधानसभा सीटें मौजूदा विधायकों की मौत की वजह से खाली हैं। मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल मार्च 2022 में खत्म होगा। इसका मतलब है कि इस विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने में 9 महीने ही बचे हैं। वहीं, लोकसभा सदस्य तीरथ सिंह रावत ने दस मार्च को सीएम पद की शपथ ली थी। ऐसे में उन्हें शपथ लेने के छह माह के भीतर विधायक बनना जरूरी है। अगर ऐसे देखा जाए तो 9 सितंबर के बाद मुख्यमंत्री पद पर तीरथ सिंह रावत के बने रहने संभव नहीं है। अब, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151 ए के तहत, उस स्थिति में उप-चुनाव नहीं हो सकता, जहां आम चुनाव के लिए केवल एक साल बाकी है। वहीं तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बने रहने के लिए विधानसभा का उपचुनाव लड़ना और जीतना जरूरी है।
ये हुआ राजनीतिक घटनाक्रम
रामनगर में आयोजित भाजपा के तीन दिनी चिंतन शिविर में भाग लेकर मंगलवार शाम को मुख्यमंत्री देहरादून पहुंचे। बुधवार सुबह वह दिल्ली के लिए रवाना हो गए। देर रात ही उनकी राष्ट्रीय अध्यक्ष से मुलाकात करने की सूचना मिली। इसके साथ ही कई तरह की चर्चाओं ने तेजी से जोर पकड़ा। ये बुलावा भी अचानक आया। बुधवार के उनके कई कार्यक्रम उत्तराखंड में लगे थे। उन्हें छोड़कर सीएम को दिल्ली दरबार में उपस्थित होने के लिए रवाना हो गए थे। बताया गया कि पार्टी हाईकमान ने उन्हें दिल्ली तलब किया। इस बीच तीरथ सिंह रावत उसी रात राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की। वह गृह मंत्री अमित शाह से भी मिले। इसके बाद आज उन्होंने उत्तराखंड में उपचुनाव कराने को लेकर चुनाव आयोग को पत्र दिया। हालांकि चुनाव आयोग पहले ही कोविड काल में उपचुनाव कराने से मना कर चुका है।
आज भी 40 मिनट नड्डा से की वार्ता
पिछले तीन दिन से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आलाकमान से बैठकों में व्यस्त मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने आज बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की। ये मुलाकात कुल 40 मिनट तक चली। बैठक के बाद सीएम कावेरी अपार्टमेंट पहुंचे। बाद में उन्होंने कहा कि वे विकास को लेकर नड्डा से मिले। अब सवाल ये उठता है कि जून माह में ही उन्होंने तीन बार दिल्ली दौरे किए। क्या पहले विकास की बात नहीं हुई, जो फिर से उत्तराखंड में अपने कार्यक्रम खारिज कर जेपी नड्डा से मिलना पड़ा। बाद में सूत्रों से खबर आई कि उन्होंने पार्टी अध्यक्ष को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
अलग थलग पड़े तीरथ
बुधवार से तीन दिन तीरथ सिंह रावत दिल्ली रहे। उनकी स्थिति असमंजस की बनी रही। उनकी सिर्फ राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा व गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात हुई। वह अन्य किसी नेता से नहीं मिले। वहीं, पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज भी दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं। हर बार दिल्ली दौरे से तरह न तो उनकी कोई फोटो जारी हुई और न ही कोई प्रेस नोट। न ही वे मीडिया से मिले। ऐसे में उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं भी जोरों पर हैं। तीरथ को गुरुवार को देहरादून पहुंचना था, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें रुकने के लिए कहा है। आज शुक्रवार यानी दो जुलाई को उन्होंने भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात करने के साथ ही चुनाव आयोग को उत्तराखंड में उपचुनाव कराने के लिए पत्र दिया। हांलाकि चुनाव आयोग पहले ही कोविडकाल की वजह से कई उपचुनाव कराने से मना कर चुका था। दूसरे उत्तराखंड में आम चुनाव का एक साल से कम समय बचा है।
दूसरी लहर में फजीहत से खुश नहीं है केंद्रीय नेतृत्व
कोरोना की दूसरी लहर में फजीहत से केंद्रीय नेतृत्व भी सीएम तीरथ सिंह रावत से खुश नजर नहीं आ रहा है। कुंभ में कोरोना टेस्टिंग घोटोला सामने आने पर भी सरकार की साख गिरी है। अब पूरी गेंद चुनाव आयोग के पाले में सरका दी गई है। ऐसे में तीरथ खुद की कुर्सी बचाने के लिए खुद ही अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। चुनाव आयोग से गुहार लगाने जा रहे हैं। अब देखना ये है कि आयोग क्या फैसला लेता है।
ओवर कांफीडेंस ने कराई फजीहत
इसे ओवर कांफीडेंस ही कहा जाएगा या फिर इसे बहुत अधिक समझदारी नहीं कहा जाएगा कि जब सल्ट की रिक्त सीट पर उप चुनाव कराए गए तो सीएम तीरथ सिंह रावत वहां से क्यों नहीं लड़े। अब अपनी कुर्सी बचाने के लिए बुधवार यानी 30 जून से दिल्ली में डेरा जमाए रहे। जून माह में सीएम तीरथ सिंह रावत तीसरी बार दिल्ली दरबार में हाजरी लगाने पहुंचे थे। तीरथ सिंह रावत के उपचुनाव लड़ने के बाद उन्हें लोकसभा से इस्तीफा देना पड़ता। कोरोना की दूसरी लहर में व्यवस्थाओं को लेकर भाजपा की छवि भी खराब हुई है। ऐसे में भाजपा लोकसभा चुनाव में जाने का रिस्क नहीं उठा सकती है। वहीं, पूरे देश भर में करीब 25 सीटें ऐसी हैं, जहां उपचुनाव से निर्वाचन आयोग ने चुनाव कराने से मना कर दिया।
दोहराई जा रही है पुरानी कहानी
फिर कहानी कुछ मार्च माह की तरह ही नजर आ रही है। तब विधानसभा के गैरसैंण में आयोजित सत्र को अचानक अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था। तत्कालीन सीएम सहित समस्त विधायकों को देहरादून तलब किया गया था। छह मार्च को भाजपा के केंद्रीय पर्यवेक्षक वरिष्ठ भाजपा नेता व छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह देहरादून आए थे। उन्होंने भाजपा कोर कमेटी की बैठक के बाद फीडबैक लिया था। इसके बाद उत्तराखंड में आगामी चुनावों के मद्देनजर मुख्यमंत्री बदलने का फैसला केंद्रीय नेताओं ने लिया था। इसके बाद मंगलवार नौ मार्च को त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। वहीं, दस मार्च को भाजपा की विधानमंडल दल की बैठक में तीरथ सिंह रावत को नया नेता चुना गया। इसके बाद उन्होंने राज्यपाल के पास जाकर सरकार बनाने का दावा पेश किया। दस मार्च की शाम चार बजे उन्होंने एक सादे समारोह में मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की।
राजनीतिक अस्थिरता के लिए है उत्तराखंड की पहचान
उत्तराखंड राज्य की पहचान राजनीतिक अस्थिरता के रूप में भी होने लगी है। यहां चाहे कांग्रेस की सरकार हो या फिर भाजपा की। दोनों ही सरकारें नेतृत्व परिवर्तन कर चुकी हैं। इस मामले में भाजपा तो सबसे आगे है। मार्च माह में नेतृत्व परिवर्तन कर त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम के पद से हटना पड़ा। फिर तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। अब उनके समक्ष भी तकनीकी पेच हैं। या तो वे उपचुनाव लड़ेंगे, या फिर से भाजपा को उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन करना पड़ेगा। उत्तराखंड ने 20 साल के इतिहास में 8 मुख्यमंत्री देखे। अकेले नारायण दत्त तिवारी ऐसे CM हैं, जिन्होंने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया। तिवारी 2002 से 2007 तक मुख्यमंत्री रहे।



