स्व. श्री प्रताप शिखर जी को उनकी पुण्य तिथि पर सादर स्मरण।
कवि:सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।
(सर्वोदय सिसक रहा है !)
शिखरों से भी उच्च शिखर था, सर्वोदय प्रताप शिखर ।
परम पद आसीन हो गया, वह प्रसून हृदय प्रताप शिखर ।
वह न पाषाण से बना शिखर था, जिसके ऊपर बर्फ जमे ।
वह देह प्राण युक्त तत्व था ,जो जन जागृति का स्रोत बने।
बांध न पाया बंधन जिसको ,पर समाज से बंधा रहा।
दिवारें - जंजीरे तोड़ी ,पर दीवार सा बना रहा।
उस प्रताप ने भी सोचा था ,शिखर कुरेडी फट जाएगी।
अंधकार से इस धरा को ,स्वर्ण किरण आ जाएगी ।
इस संसार के अरण्य में,वह भटकता मरू मिर्ग था।
भाव लोक भटकता पक्षी, वह यथार्थ का दर्पण था।
उस प्रताप के महाप्रयाण से ,हेबल सरिता सूख गई ।
पर उसकी यस गाथाएं ,अब घाटी शिखरों में फैल गई ।
कोटी कुजनी धन्य हो गए ,उस पुण्य प्रताप की कर्मों से ,
पर सर्वोदय सिसक रहा है ,दिव्य आत्मा के मरमों से ।
परम यशस्वी परम प्रताप, तुम परम पद आसीन हुए।
शिखरों के ऐ! महा शिखर ,क्यों काल बज्र से चटक गए।
अस्थि राख अवशेषों से ,अब हैंवल गंग पवित्र हुई ।
प्राणवायु से उस विदेह की,नवजीवन की सांस बनी।
कवि निशांत संवेदनाएं, घनीभूत हो बरस पड़ी ,
द्रविभूत हो गई रागनी, क्यों नैनों से छलक पड़ी ?
श्री देव सुमन जी के जन्म दिवस के साथ ही आज एक और प्रख्यात साहित्यकार, कवि, पर्यावरणविद और समाज सेवी( स्व . प्रताप शिखर) की पुण्य तिथि है। उनके बारे मे न कुछ लिखना अपना कर्तव्य है।
जन जागृति संस्थान खाड़ी में कई बार उनके कार्यक्रम में सम्मिलित होने का अवसर मिलाऔर उनके जीवन के जुड़े हुए अनेक भूले बिसरे संस्मरण याद आ जाते हैं।
उस महान साहित्यकार के बारे में जितना कुछ कहा जाए उतना कम ही कम है । सरल और सौम्य प्रवृत्ति का यह साहित्यकार, जो कि अल्पकाल में ही संसार से विदा हो गया लेकिन अपने जीवन के कम समय में ही वह काफी कुछ कर गए । जिसके प्रमाण आज भी जन जागृति संस्थान के रूप में दिखाई दे रहे हैं।
स्वर्गीय श्री प्रताप शिखर मेरे ननिहाल के निकटवर्ती गांव कोटी कुजणी के निवासी थे। यद्यपि मैं खाड़ी से ही उन्हे जानता था । कुंवर प्रसून और प्रताप शिखर की यह जोड़ी समाज सुधार के क्षेत्र मे बहुत ही हिट जोड़ी थी ।अपने समय से दोनों स्नातक स्तर की पढ़ाई प्राप्त किए हुए ,दोनों ही मनीषियों ने विपन्नता में अपना जीवन को यापन किया। लेकिन प्रताप शिखरजी खुश खुद किस्मत भी रहे कि उन्हें श्रीमती दुलारी देवी जैसी पत्नी मिली ,जो कि एक अध्यापिका के रूप में भी कार्यरत रही हैं और प्रसिद्ध समाजसेवी और पुरानी टिहरी के जाने माने व्यक्तित्व स्व श्री चिरंजी लाल असवाल जी की पुत्री होने का उन्हें गौरव हासिल था। इसलिए प्रताप शिखर जी ने इतनी विपन्नता नहीं झेली ,जितनी स्वर्गीय कुंवर प्रसून जी ने झेली।
तत्कालीन समय में उनके साथ एक और नाम जुड़ा और वह था बीज बचाओ आंदोलन के प्रणेता श्री विजय जड़धारी जी का। जो कि आज भी बीज बचाओ आंदोलन को समर्पित है । श्री धूम सिंह नेगी गुरुजी इन सभी के रोल मॉडल थे। सभी के मार्गदर्शक रहे हैं। श्री धूम सिंह गुरुजी उम्र में भी इन तीनों में बड़े होने के नाते तथा सौम्यता और सज्जनता की प्रतिमूर्ति होने के कारण विचारधाराओं में साम्य स्थापित करने में भी अग्रणी भूमिका मे रहे हैं । वह स्वर्गीय गोपेश्वर प्रसाद कोठियाल, आलोक प्रभाकर, गंगा प्रसाद बहुगुणा आदि जैसे लोगों के समान ही समाज सेवा और पर्यावरण के क्षेत्र में समर्पित रहे हैं । स्वर्गीय श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी का स्नेह, मार्ग दर्शन भी तमाम लोगों के साथ रहा और आंदोलन की बारीकियों को समझाने में वह सफल रहे।
01जुलाई 2012 को उनकी स्मृति दिवस के अवसर पर उनके निवास स्थान खाड़ी में एक वृहद कार्यक्रम का आयोजन किया गया था । जिसमें कवि सम्मेलन भी आयोजित किया गया था। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध गायक श्री नरेंद्र सिंह नेगी, श्री चंद्र सिंह राही ,डॉक्टर अतुल शर्मा तथा मैं स्वयं सम्मिलित था। इसके अलावा विभिन्न क्षेत्रों के जानकार तथा उन्नायक उस कार्यक्रम में मौजूद थे। जिनमें जगदंबा प्रसाद रतूड़ी ,डॉ वीरेंद्र पैन्यूली , श्री शमशेर सिंह बिष्ट, डॉक्टर शेखर पाठक, श्री महेंद्र कुंवर, श्री धूम सिंह नेगी, श्री रघुभाईं जड़ धारी आदि तमाम लोग उपस्थित थे । बहुत ही भव्य और लाजवाब या कार्यक्रम रहा । जिसमें स्वर्गीय प्रताप शेखर जी के बारे में जानने और सुनने का जनमानस को भी लाभ मिला। उसके बाद 2013 , 14, 15, 16, 17 में भी कार्यक्रम आयोजित किए गए। जिनका कि मैं साक्षी रहा हूं।
अनेक अवसरों पर जनजागृति संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में शिरकत करता रहा हूं । कभी-कवि के रूप में, कवि साहित्यकार के रूप में तो कभी समाजसेवी के रूप में।
स्वर्गीय प्रताप शेखर जी न केवल एक समाजशास्त्री थे बल्कि प्रसिद्ध साहित्यकार भी थे । कुछ समय पूर्व उनकी पुत्री डॉक्टर सृजना राणा ने उनकी कहानियों को संकलित करके " उगते सूरज की तिरछी किरणें" नामक किताब में स्थान दिया । इस पुस्तक में स्वर्गीय प्रताप शिखर जी के द्वारा लिखी हुई 20 कहानियां संकलित हैं। जिनमें निराशा ,उगते सूरज की तिरछी किरणें, मंसाराम का प्रवास, भैंस की विदाई, भास्कर कोठियाल की गाय, दूसरी बेटी और आजा पारो आजा आदि महत्वपूर्ण कहानियां है इसके अलावा अनेक गढ़वाली कहानियां भी स्वर्गीय प्रताप सागर जी के द्वारा लिखी गई हैं जो कि समसामयिक लब्ध प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुई हैं ।" कुरेड़ी फटैगी " टिहरी गढ़वाल की लोक कथाएं, एक दिन की बात है आदि महत्वपूर्ण कहानियां उनके द्वारा लिखी गई।
कुछ समय पूर्व उनके यशस्वी पुत्र श्री अरण्य रंजन ने हिमालय सेवा संघ की ओर से जल जागर नामक एक किताब प्रकाशित करवाई। जिसका संपादन विद्वान डॉक्टर मनोज पांडे जी( हिमालय सेवा संघ) ने किया। जल जागर में प्रताप शिखर जी के कहानियों के अलावा ,डॉ अतुल शर्मा ,कुंवर प्रसून, स्व घनश्याम सैलानी, वाचस्पति रयाल और मेरी बारह कविताएं संकलित हैं।
मै स्व प्रताप शिखर जी को उनकी पुण्य तिथि के अवसर पर स्मरण करते हुए ,भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। उन्हें स्मरण करते हुए स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता हूं । आशा करता हूं कि उनकी विरासत को उनका पुत्र श्री अरण्य रंजन जी यथा सामर्थ्य आगे बढ़ाते रहेंगे।
(कवि कुटीर)
सुमन कॉलोनी चंबा ,टिहरी गढ़वाल।


