पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है-दादर और नगर हवेली(सिलवासा)का आदिजाति संग्रहालय (ट्राइबल म्यूजियम।

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 कवि:सोमवारी लाल सकलानी, निशांत।      

  दादर और नगर हवेली( सिलवासा) यात्रा के उत्तरार्ध में आज दी आदिजाति संग्रहालय(ट्राईबल म्यूजियम) को देखने का अवसर प्राप्त हुआ। आदिवासी संस्कृति और जीवनशैली को समझने का प्रयास किया। अनेकों जनजातीय समूहों की मिश्रित सभ्यताओं को देखने का अवसर प्राप्त हुआ।

    सागरतटीय  इस क्षेत्रीय संस्कृति का अवलोकन करने का  मौका मिला। पर्वतीय क्षेत्रों की संस्कृति से मिलती- जुलती आदिवासी संस्कृति यहां दिखाई दी। यद्यपि जलवायु और वातावरण में काफी भिन्नता है फिर भी हिमालयन क्षेत्र के अनेक भागों की सभ्यता के दर्शन इस क्षेत्र में भी हो जाते हैं।

    परंपरागत आभूषण, काष्टोपकरण, खेती-बाड़ी के तरीके, अनेकों देवी -देवता, जीविकोपार्जन के साधन, सामूहिक नृत्य -गान और वाद्य यंत्र, मोटे तौर पर सभी चीजों का अवलोकन किया।

    आदिवासी समाज के तत्कालीन वीर मराठा और पुर्तगालियों की वीरता, युद्ध ,हथियार आदि को भी देखने का अवसर मिला। इसके साथ ही सागर तटीय इस भूभाग में किस प्रकार से संस्कृति का विकास हुआ, इसकी एक झलक भी इस ट्राइबल म्यूजियम से देखने को मिली।

     सिलवासा के केंद्र भाग में स्थिति यह म्यूजियम पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। बगल में ही दादर एंड नगर हवेली का पर्यटन विभाग का बांग्ला, कार्यालय, खेल भवन तथा सिलवासा का कलेक्ट्रेट स्थित है।  कल भी इस म्यूजियम को देखने के लिए गया था लेकिन सोमवार के दिन म्यूजिक बंद रहता है। इस लिए आज पुनः वहां जाने का समय निकाला। 9:00 बजे प्रात: से और 5:00 बजे अपराह्न तक निशुल्क इस म्यूजियम का अवलोकन किया जा सकता है।

     उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार तथा दक्षिण भारत के अनेक हिस्सों से लोग यहां म्यूजिक देखने के लिए आते हैं और अनेक लोगों से मैंने बातचीत भी की। इसी परिपेक्ष श्री एस पात्रा, श्री गणेश जी, जाधव साहब आदि  लोगों से भी कई देर तक बातचीत की और इस आदिवासी संस्कृति और सभ्यता को जानने और सीखने की भरपूर कोशिश की।

    कृषि और आखेटक के लिए मशहूर यह क्षेत्र आज विकास की दौड़ में सरपट भागा जा  रहा है। बड़ी बड़ी दैत्याकार इंडस्ट्रियां जहां स्थापित हो चुकी है और आदिवासी समाज की अधिकांश भूमि का अधिग्रहण कर लिया गया है जिन पर अनेकों औद्योगिक क्षेत्र विकसित हो चुके हैं। अब यहां आदिवासी लोगों के अलावा उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, झारखंड, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि राज्यों के लोगों का बाहुल्य है। फिर भी भौगोलिक संरचना और प्राकृतिक संस्कृति के स्वरूप का की झलक भी देखी जा सकती है।

   

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