नीली कमीज: एक समीक्षा -

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Team uklive

कवि सोमवारी लाल सकलानी ( निशांत ) की कलम से 

"नीली कमीज" एक सार्वभौमिक नाम है। सरकारी शिक्षा जगत की सदियों से शान रही है। युवा कलाकार और बहुमुखी प्रतिभा के धनी  दीप नेगी (दीपेंद्र) की यह डॉक्यूमेंट्री /वीडियो देखकर हार्दिक प्रसन्नता के साथ अतीत याद आ गया ।दीपेंद्र ने वास्तविकता का चित्रण अपनी इस डॉक्यूमेंट्री में किया है। अंग्रेजों के समय से स्थापित विश्व का सबसे बड़ा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, उत्तर प्रदेश (इलाहाबाद) रहा है। नीली कमीज और खाकी पैंट विद्यालय की शिक्षा की यूनिफार्म (गणवेश) रही है। एक पहचान, एक अस्मिता, एकरूपता और एक उद्देश्य "नीली कमीज" के गर्भ में छुपा है ।

   सोच संस्था के संस्थापक दीप नेगी (दीपेंद्र) ने अपने परिवेश, पर्वतीय और ग्रामीण अंचल की सरकारी शिक्षा की हकीकत "नीली कमीज" के द्वारा अभिव्यक्त की है। नीली कमीज ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों की असली कहानी बयां कर देती है। भूख, गरीबी, शारीरिक श्रम, घरेलू कार्य, रहन-सहन, जीवनशैली और वातावरण की कहानी है।

     पर्वतीय क्षेत्र के बच्चों के उत्साह,कर्तव्य परायणता, खुशनुमा व्यवहार,शारीरिक क्षमता और मानसिक विकास की कहानी भी है। प्रकृति के सानिध्य में रहकर प्राकृतिक गुणों का समावेश, लोक व्यवहार और लोक समाजवादी "नीली कमीज" के माध्यम से चित्रित किया गया है। "नीली कमीज" पहाड़ की भौगोलिक स्थिति, जीवनशैली, बच्चों के कौशल, क्षमता और सहयोग की भावना के साथ-साथ दिनचर्या को भी प्रकट करती है।

         सरकारी शिक्षा की दशा और दिशा, संस्थागत संसाधन और पठन-पाठन की व्यवस्था का भी बखूबी चित्रण किया गया है। बच्चों का भोलापन, स्वस्थ शरीर, और संतुलित मस्तिष्क तथा परिस्थितियों का भी चित्रण डॉक्यूमेंट्री में किया गया है।

    दीपेंद्र ने अपने घर- गांव के विद्यालय राजकीय इंटर कॉलेज कांडीखाल जुवा टिहरी गढ़वाल में इस डॉक्यूमेंट्री कि शूटिंग करके, क्षेत्रीय भावनाओं के अनुरूप धरातल पर कार्य किया है जो कि अनेक प्रतिभावान बच्चों के लिए प्रेरणा स्रोत है। बिना किसी पूर्व प्रशिक्षण के ग्रामीण बच्चे कितना बेहतर कार्य कर सकते हैं, "नीली कमीज" में समाहित है। पर्वतीय क्षेत्र में यद्यपि शिक्षा व्यवस्था में काफी परिवर्तन हुआ है लेकिन कमोवेश ग्रामीण क्षेत्रों की स्थिति 40 साल पुरानी ही है। यूनिफार्म बदल देने से ज्ञान, कौशल और मनोवृति नहीं बदलती है। उनके लिए सुधार, ढांचागत सुविधाएं और भावना जरूरी है। ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चे किस विकट परिस्थिति में पढ़- लिखकर भविष्य का निर्माण करते हैं, यह डॉक्यूमेंट्री से एहसास हो जाता है। बाल मनोविज्ञान तथा बाल सुलभ भावनाओं का  विहंगम चित्रण "नीली कमीज" के द्वारा प्रदर्शित किया गया है। डॉक्यूमेंट्री की थीम और उद्देश्य दोनों स्पष्ट स्पष्ट है तथा दर्शक अपनी भावनाओं के अनुरूप समझ लेता है।

   दीप नेगी 'दीपेंद्र' सुनार गांव (जुवा) टिहरी गढ़वाल के मूल निवासी हैं। प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय कांडीखाल, जुवा में होने के बाद आपने हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की। 'होनहार बिरवान के होत चिकने पात' वाली कहावत उन पर चरितार्थ होती है। माता का साया बचपन में ही सिर से उठ गया। उसके बाद दूसरी माता का स्नेह  भी प्राप्त नहीं हुआ। उनका भी कुछ समय बाद देहावसान हो गया। किशोरावस्था आते-आते दीपेंद्र को परिस्थितियों से जूझते हुए लोक समाज का अनुभव हो गया।

    आपके पिता  जगत सिंह नेगी भी एक सृजनशील व्यक्ति हैं। वह अनुवांशिक गुण  दीप में आया। विज्ञान के उच्च शिक्षा प्राप्त होनहार छात्र होने के बावजूद भी वह अपनी बोली, भाषा, संस्कृति और लोक समाज की पहचान बन गए । अनेक संस्थाओं समूह फाउंडेशन, "सोच"  के संस्थापक रहे हैं और आज भी हैं। भारत ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में आप सेवा कर चुके हैं। इतनी छोटी उम्र में इतनी बड़ी उपलब्धियां हासिल करना, मैं दैवीय चमत्कार मानता हूं। फिर भी उनकी लगन, निष्ठा, मेहनत और पुरुषार्थ का फल है।

   उनकी सोच आज "सोच"  संस्था के माध्यम से देश-विदेश में ही नहीं बल्कि अपने क्षेत्र में भी समयानुसार अच्छा कार्य कर रही है। दीप एक अच्छे कलाकार ही नहीं बल्कि अच्छे लेखक और कवि भी हैं। वह ऊंचे दर्जे के सैफ भी हैं। इसके अलावा एक सकारात्मक और रचनात्मक सोच के इंसान हैं। मैं  दीप नेगी 'दीपेंद्र' को शुभ आशीर्वाद के साथ उनकी "नीली कमीज" के लिए बधाई देता हूँ. 

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