Team uklive
अखण्ड हरिनाम संकीर्तन सहित सम्पूर्ण भारत की 21000 किमी की पदयात्रा सत्संकल्पकर्ता स्वामी निर्मल चैतन्य पुरी जी महाराज एवं स्वामी राजेन्द्र पुरी जी महाराज का पदयात्रा के पांचवे दिन सुखतीर्थ शुक्रताल पहुँचने पर भव्य स्वागत हुआ।
आपको बतादें कि
दक्ष मंदिर कनखल हरिद्वार से प्रारम्भ हुई अखण्ड हरिनाम सहित संपूर्ण भारत की 21000 किमी की पदयात्रा के पांचवे दिन अखण्ड हरिनाम संकीर्तन के साथ पदयात्रा प्रथम दिवस हरिद्वार जनपद के बोंगला गाँव पहुंची जहाँ राधे कृष्ण जी के मन्दिर में रात्रि विश्राम हुआ व अखण्ड हरिनाम संकीर्तन जारी रहा। वहीं पदयात्रा द्वितीय दिवस में प्रात: कालीन पूजा, अभिषेक के पश्चात आगे बढ़ी जिसके साथ ही देर शाम पदयात्रा हरिनाम संकीर्तन के साथ रुड़की स्थित शेरपुर महाकाल शनि देव मन्दिर में रात्रि विश्राम हुआ जिसके पश्चात रात्रि पूजन, सत्संग के साथ अखण्ड हरिनाम संकीर्तन पूरी रात चलता रहा। वहीं पदयात्रा के तृतीय दिवस पदयात्रा नारसन खुर्द गाँव स्थित शिव मन्दिर में रात्रि विश्राम हुआ जहाँ अखण्ड हरिनाम संकीर्तन के साथ प्रवचन हुए। पदयात्रा चतुर्थ दिवस में प्रात: कालीन पूजन, अभिषेक के बाद आगे बढ़ी और देर शाम हरिनाम संकीर्तन के साथ सिकंदरपुर स्थित जाग्रीत शिव मन्दिर पहुंची। आपको बतादें कि पदयात्रा सत्संकल्पकर्ता स्वामी निर्मल चैतन्य पुरी जी महाराज व स्वामी राजेन्द्र पुरी जी महाराज 21000 किमी की सम्पूर्ण भारत की पदयात्रा कर रहे हैं जिसमें अखण्ड हरिनाम संकीर्तन हो रहा है। पदयात्रा सत्संकल्पकर्ता स्वामी निर्मल चैतन्य पुरी जी महाराज ने बताया कि अखण्ड हरिनाम संकीर्तन सहित सम्पूर्ण भारत की पदयात्रा हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे के साथ
सम्पूर्ण भारतवासियों के अन्तर्हृदय में राष्ट्र प्रेम के साथ आपसी सद्भाव वृद्धि के साथ ही
समृद्ध भारत सुखी भारत, संस्कृति से सुसम्पन्न भारत । तन मन से पवित्र भारत, भक्ति रस से सराबोर भारत ।। पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन, नशामुक्ति को लेकर पंचवर्षीय अखण्ड हरिनाम संकीर्तन सहित सम्पूर्ण भारत की 21000 किमी. की पदयात्रा की जा रही है। उन्होंने बताया पदयात्रा के दौरान प्रत्येक दिन विश्राम स्थल पर नित्य पूजन, सत्संग, प्रवचन आदि चल रहे हैं साथ ही पदयात्रा विश्राम स्थल पर ठहरने हेतु मन्दिर व आश्रम के लोगों का सहयोग भी मिल रहा है।
पदयात्रा पंचम दिवस में हरिनाम संकीर्तन करते हुए भोकर खेड़ी, इलाहवास होते हुए सुखतीर्थ, शुक्रताल पहुंची जहाँ जगह जगह पर स्थानीय लोगों ने स्वामी निर्मल चैतन्य पुरी जी महाराज व राजेन्द्र पुरी जी महाराज का ढोल नगाड़ों के साथ फूल मालाओं से स्वागत किया। वहीं दोनों संतों ने इलाहवास में सत्संग व प्रवचन किया साथ ही हरिनाम संकीर्तन जारी रहा।
अपरान्ह 4 बजे पदयात्रा सुकतीर्थ हनुमतधाम शुक्रताल पहुँचने पर ढोल नगाड़ों के साथ फूल मालाओं से भक्तों के साथ स्वामी विज्ञानानंद जी सरस्वती जी महराज ने स्वामी स्वामी निर्मल चैतन्य पुरी जी महाराज व राजेन्द्र पुरी जी महाराज का भव्य स्वागत किया। जहाँ दोनों संतों ने
शुकतीर्थ, शुक्रताल में अक्षय वट वृक्ष के दर्शन किए और आगे की पदयात्रा के लिए आशीर्वाद लिया।
आपको बतादें कि यह वही अक्षय वट वृक्ष है जो श्रद्धा और भक्ति का केंद्र है। पाँच हजार एक सौ वर्ष से अधिक प्राचीन यह वट वृक्ष महामुनि श्री शुकदेव जी की श्रीमद्भागवत कथा का साक्षी है। इसी वट वृक्ष की शीतल छाया में 88 हजार ऋषि-मुनियों और श्रोताओ के मध्य बैठकर हस्तिनापुर के तत्कालीन सम्राट महाराज परीक्षित जी ने श्राप से मुक्ति के लिए सात दिन तक ब्रह्मनिष्ठ, जीवनमुक्त महर्षि श्री शुकदेव जी महाराज के श्रीमुख से अमृतवाणी सुनी थी। हरे-भरे वट वृक्ष की शाखाएं दीर्घाकार रुप में दूर तक फैली है। इस दिव्य वट वृक्ष पर कभी पूर्णरूप से पतझड़ नहीं होता है। इसमें अन्य वट वृक्षों की तरह जटाएं नहीं निकलती है, शुक पक्षी भी निवास करते है। यह वट वृक्ष पौराणिक शुकतीर्थ में मुनि शुकदेव जी का प्रतीक है। विशाल वट वृक्ष के दर्शन से शांति,आनंद की अद्भुत अनुभूति होती है। श्रद्धालु अक्षय वट पर अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए मन्नत का धागा बांधते है। जिसके बाद पदयात्रा हनुमतधाम पहुँची। रात्रि में पूजन, सत्संग, प्रवचन के साथ अखण्ड हरिनाम संकीर्तन चलता रहा। इस अवसर पर स्वामी विज्ञानानंद जी सरस्वती जी महाराज, डॉ. रामभूषण विजल्वाण, आचार्या मीनाक्षी कोठारी, सुभाष चन्द्र सकलानी, मांगी लाल त्रिवेदी, शिव नारायण शर्मा, संजय मिश्रा, मोहन चन्द्र जोशी, विजय, वृजमोहन, रवींद्र आदि मौजूद रहे।