बाकला (शिवचना) पर चल रहे शोध कार्यों की ली जानकारी

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रिपोर्ट : ज्योति डोभाल 


टिहरी : उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रो में बाकला,  जिसे शिवचना व फाबाबीन के नाम से भी जाना जाता है, कि फसल को बढ़ावा देने किए लये भरसार विश्वविद्यालय के वानिकी महाविद्यालय, रानीचौरी व शोध केंद्र, गजा में शोध कार्य अखिल भारतीय क्षमतावान  पसल शोध परियोजना  के अंर्गत किया जा रहा है जिसका निरीक्षण डा0 हनुमान लाल रैगर, परियोजना समन्वयक, भा.कृ.अनु.प.- राष्ट्रीय पादप अनुवांशिक संसाधान ब्यूरो, नई दिल्ली, भारत सरकार व डा अरविन्द बिजल्वाण, निदेशक शैक्षिक, भरसार विश्वविद्यालय द्वारा अप्रैल 8, 2022 को किया।

परियोजना के वैज्ञानिको डा0 अजय कुमार व डा0 अरूणिमा पालीवाल द्वारा बाकला फसल पर वानिकी महाविद्यालय व शोध केंद्र गजा में चल रहे फसल सुधार, जननद्रव्य परीक्षण व सस्य तकनीकों के विकास से सम्बन्धित शोध कार्यों से परियोजना समन्वयक को अवगत कराया। डा अरविन्द बिजल्वाण, निदेशक शैक्षिक, भरसार विश्वविद्यालय ने कहा कि शोध कार्यो से विकसित होने वाली तकनीकों से उत्तराखंड ने निचले पर्वतीय क्षेत्रो के किसानो को लाभ पहुंचेगा। डा0 रैगर ने परियोजना के वैज्ञानिकों के प्रयासों को सराहा और इस फसल को किसानों तक पहुंचाने की दिशा में और प्रयास किए जाने पर जोर दिया। उन्होंने बाकला के महत्व एवं भविष्य की अपार संभावनाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बाकला की फलियों का सब्जी के रूप में व दानो का दाल के रूप में प्रयोग कुपोषण को कम कर सकता है साथ ही रबी के मौसम में बाकला की फसल लेने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति  भी बढ़ेगी। बाकला की फसल निचले पर्वतीय क्षेत्रों में रबी फसलों के साथ एक अच्छा विकल्प हो सकती है। इस मौके पर  भरत भूषण नकोटी,  कुलदेव मखलोगा,  विजय पाल,  हरिकिशन  आदि फील्ड स्टाफ मौजूद थे।

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