ग्रामीणों की वर्षों पुरानी मांग पर विधायक की दरियादिली व चुनावी मौसम की सौगात

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Team uklive


रिखणीखाल : आखिरकार लम्बे इन्तज़ार के बाद रिखणीखाल प्रखंड के सीमांत,दुर्गम गाँव नावेतल्ली को मिल ही गई चुनावी मौसम में सड़क की सौगात,जिसका ग्रामीण बेसब्री से आतुर थे।

बहुचर्चित,बहुप्रतीक्षित गाँव की वर्षों पुरानी मांग जिसके लिए ग्रामीण कई  सालों से गुहार लगा रहे थे


 व सुनहरे सपने संजोये हुए थे उसका आज शिलान्यास हो ही गया।समय का चक्र व पहिया घूमता गया ,अन्ततः आज वह शुभ घड़ी,शुभ मुहूर्त,सुखद पल लैंसडौन विधान सभा के ग्राम नावेतल्ली के लिए आया,जहाँ विधायक  महन्त दिलीप सिंह रावत  के द्वारा 2'5 किलोमीटर सड़क का शिलान्यास किया गया।

स्वतंत्र भारत के 75 वें वर्ष के इतिहास में ग्रामीणों के लिए ये दिन किसी अद्भुत चमत्कार से कम नहीं है।

सभ्यता व विकास का पहिला पहिया घूमते हुए व जे सी बी मशीन की तरफ देखते हुए गाँव की महिलाए,बच्चे ,वृद्ध अति उत्साहित,प्रसन्नमुद्रा में स्वयं को सौभाग्यशाली व गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं तथा फूले न समा रहे हैं.

थोड़ा सड़क देर से आने व बार बार तिथि बदलने से मायूस भी है।फिर अपने मन को बहलाते हैं कि चलो देर आये दुरुस्त आये।किसी ग्रामीण का कहना है कि-


"बहुत देर कर दी ये सड़क तूने मेरे गाँव आने में।

अब तो लोग देश जा चुके तुझे ढूंढने में" ।।


सड़क के अभाव में ग्रामीणों ने कई  बीमार,गर्भवती महिलाओ व आकस्मिक बीमारियों से जूझते कई  लोगों को खोया व कंधे में ढोया तथा उनका दुख दर्द देखा व महसूस किया,और तो रहा दूर कोई अधिकारी,कर्मचारी,डॉक्टर आदि इस गाँव में आने को कतराते थे कि कैसे नावेतल्ली पैदल जायें।

आज ग्रामीण  विधायक लैंसडौन  महन्त दिलीप सिंह रावत  का आभार प्रकट कर रहे हैं कि उनका तीसरा कार्यकाल सफल हो।

ग्रामीणों ने कहा कि इसी परिप्रेक्ष्य में एक कविता भी प्रस्तुत की गई है,जो निम्नवत है :-कविता- शीर्षक- पुरखों के धूमिल सपने 

1-शिलान्यास हो रहा है

आज मेरे   गाँव की रोड का

हम भी अब गर्व से रखेंगे

एक क़दम विकास की ओर का

भारत के नक्शे में सूरते हाल 

मेरी नावे तल्ली का

एक दर्द से मरीज कराहे  तो

दूर दूर तक डॉक्टर नही मिलता

 सालों से लड़ते आये थे

 कोई सुनवाई नही होती थी

 सर झुका है अपना भी शर्म से

 मां बहिनें जब कष्ट में रोती थी

लाचारी के ओ मुश्किल दिन

शायद अब  बीत ही जायेंगे 

चढ़ चढ़ पगडंडियां जो हारे  

शायद !अब जीत ही जाएंगे

कितने बुरे एहसास से

गुजरे कितने बुरे दौर से

कई जिंदगियां खोई हमने

ऊबड़ खाबड़ भागदौड़ से

कईयों के हौसले टूटे हैं

कईयों  की जिंदगी हारी है

माटी के कर्म वीर लड़ते रहे

तब जाके बाजी मारी है

नतमस्तक उन सिपाहियों को  करम से जिनके ये दिन देखा

 एक एक ग्रामीण ऋणी उनका

बदल दी जिन्होंने भाग्य रेखा

कितने बुरे दिन झेले हैं

हाय रे!मेरे ग्रामीणों ने

एक दर्द की गोली लाने भी

पगडण्डी चढ़ गए कई मीलों में

जीवन जीने की जिजीविषा

न छाँव देखी न धूप देखा

घनघोर जंगलों से गुजर गए 

न जानवर देखे न ख़ौफ देखा 

चौपट इन खेत खलिहानों को

फिर से आबाद बनायेंगे

पुरखों के धूमिल सपनों को

अन्न धन से ख़ूब सजाएँगे

एक ख्वाब जो टूटा टूटा था

एक आस जो खोई खोई थी

उस हाथ मे कुछ न कुछ होगा

अब तक जो बेरोजगार होई थी

उन आँखों के सपनों के बीज

     भावी पीढ़ियों में बोएंगे

मिट गए जो लाल माटी के लिए

अश्क-मोती उनके नही खोयेंगे

  जी भरके सुकूँ से बैठेंगे

    स्वर्णिम सपनों के छाँव में

धूं-धूं के होगा आवागमन

कभी शहर तो कभी मेरे गाँव में

अभी तो एक जंग जीती है

कई लड़ाइयां अभी बाकी है विकास की पथरीली पगडंडियों में

खड़ी चुनौतियाँ अभी काफ़ी है

शिक्षा और स्वास्थ्य भी पाएंगे

बेरोजगारी भी मिटानी है

पहाड का पानी भी लौटाएंगे

और जवानी भी लौटानी है

रोजगार के लघु उधोगों से

अपने घर गाऊँ को भरना है

भरण पोषण क्यों न होगा जब

 हर हाथ को हुनरमन्द करना है

पहाडों की बदहाली के लिए

पलायन भी जिम्मेदार है

और लोगों की खुशहाली के लिए

जरूरी घर घर  रोजगार है

बुनियादी सुविधा से जबतक

कोई भी समाज ग्रसित होगा

ऐसे समाज का चिंतित प्राणी

बदहाली में दिग्भ्रमित होगा

राहों में कई कांटे होंगे

परछाई तलक साथ छोडेगी

ढुलमुल विकास के पहिये पर

मंजिल -पथ आसां नही होगी

पहाडों ने बहुत कुछ खोया है

अब और कुछ नही खोने देंगे

बेकारी और पलायन की मार से

अब और इसे नही रोने देंगे

एकजुट होकर यूँही सदैव

लड़ते रहना मेरे शूरवीरों!

फौलादी इरादे लेकर तुम

पहाडों के लिए भी जीना वीरों!

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