Team uklive
टिहरी : टिहरी जिले के बूढ़ाकेदार में मंगसीर बग्वाल की सदियों पुरानी परंपरा आज भी जीवंत है ।
भिलंगना ब्लाक के थाती-कठुड़ क्षेत्र में गुरू कैलापीर के आगमन पर यह त्योहार दिवाली पर्व की भांति हर्षोल्लास से मनाया जाता है ।
बग्वाल मनाने देश-विदेश में रहने वाले लोग और विवाहित बेटियां बड़ी संख्या में अपने गांव पहुंचती हैं ।
मान्यता है कि करीब छह सौ साल पहले चंपावत में विराजमान गुरू कैलापीर की पूजा-अर्चना में वहां अक्सर विघ्न आने पर देवता अपने 54 चेलों और 52 वीरों के साथ दीपावली के एक माह बाद बूढ़ाकेदार पहुंचे थे ।
देवता के थाती-कठुड़ में आकर विराजमान होने की खुशी में क्षेत्र के लोगों ने दिवाली मनाई थी ।
बूढ़ाकेदार मंदिर समिति के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह नेगी और मीडिया प्रभारी डीएस गुनसोला ने बताया कि तभी से हर साल मंगसीर की दिवाली धूमधाम से मनाने की परंपरा चली आ रही है ।
इसी तरह थाती-कठुड़ क्षेत्र में चतुर्दशी और अमावस्या को दो दिवसीय बग्वाल और तीन दिवसीय बलराज मेला आयोजित होता है ।
वहीं बूढ़ाकेदार में मंगसीर बग्वाल पांच दिनों तक मनाई जाती है ।
इस बार यह पर्व दो-तीन दिसंबर को मनाया जाएगा और छह दिसंबर तक बलराज मेला होगा। नब्बे जूल के लोग अपने आराध्य देव श्री गुरू कैलापीर देवता के दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में बूढ़ाकेदार पहुंचते हैं ।
गुरू कैलापीर के मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद लोग मंदिर के पास एकत्रित होकर ढोल-दमाऊं की थाप पर भैलो खेलते हैं ।
दूसरे दिन सुबह से मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद देवता से मंदिर से बाहर आकर दर्शन देने की मन्नत मांगते हैं। इस दौरान ढोल-नगाड़े और रणसिंगे की धुन के साथ वहां एकत्रित सैकड़ों लोग खूब सीटी बजाते हैं ।
इस बीच सात गांवों के ठकुराल ढोल-दमाऊं के साथ दोपहर को मंदिर पहुंचते हैं, उसके बाद ही गुरू कैलापीर बाहर आकर खेत में पहुंचते हैं ।
फिर देवता निशान के साथ खेतों में दौड़ लगाते हैं। मेले में पहुंचे सैकड़ों लोग भी निशान के साथ खेतों में दौड़ लगाकर पुण्य अर्जित कर मन्नत मांगते हैं ।
बहू-बेटियां मन्नत पूरी होने पर देवता को भेंट चढ़ाती हैं। खेतों में सात चक्कर लगाने के बाद देवता मंदिर में अपने स्थान पर विराजमान हो जाते हैं ।
उसके बाद तीन दिनों तक भव्य बलराज मेला लगता है, जिसमें आस-पास गांव की महिलाएं और बच्चे खूब खरीदारी करते हैं।

