बलदेवचन्द भट्ट
खटीमा गोलीकांड की 25वी बरसी,शहीदों के सपने अभी अधूरे
1 सितंबर 1994 खटीमा गोलीकांड में सात राज्य आंदोलनकारी हुए थे शहीद सैकड़ों लोग घायल हुए थे
खटीमा- पृथक उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर भले ही लम्बी लड़ाई लड़ी गई हो। लेकिन 1 सितंबर 1994 को खटीमा में हजारों राज्य आंदोलनकारियों पर बर्बरता पूर्ण हुए गोलीकांड की चिंगारी ने ही उत्तराखण्ड राज्य निर्माण के मार्ग को प्रशस्त किया था। इस गोलीकांड में खटीमा कर सात राज्य आंदोलनकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी लेकिन राज्य गठन के 19 साल बाद आज भी शहीदों के सपनो का उत्तराखण्ड हमे नही मिल पाया है।
राज्य आंदोलन के इतिहास में पहले गोलीकांड के रूप में दर्ज खटीमा गोलीकांड को याद कर आज भी राज्य आंदोलनकारी सिहर उठते है। एक सितंबर 1994 को जब लगभग दस हजार राज्य आंदोलनकारियों का हुजूम अलग राज्य की मांग को लेकर खटीमा की सड़कों पर उतरा था तो तत्कालीन पुलिस कोतवाल डी के केन द्वारा राज्य आंदोलनकारियों के इस हुजूम पर बर्बरता पूर्ण गोलियां बरसाई थी। इस गोलीकांड ने हमसे सात राज्य आंदोलनकारियों को हमेशा के लिए छिन लिया था। खटीमा गोलीकांड की चिंगारी के बाद जंहा पूरा उत्तराखण्ड आक्रोशित हो सड़को पर उतर गया था वही उसके बाद ही मसूरी व रामपुर तिराहा कांड ने पृथक राज्य की मांग को अपने चर्मोउत्कर्ष पर पहुँचा दिया था। इस अपार संघर्स के बाद ही हमे 9 नवम्बर 2000 को पृथक उत्तराखण्ड राज्य मिल पाया था। लेकिन इस राज्य आंदोलन की पूरी यात्रा में खटीमा गोलीकांड का अपना अहम स्थान है।खटीमा गोलीकांड के बाद उठी चिंगारी ने ही हमे पृथक उत्तराखण्ड राज्य की प्राप्ति के करीब पहुँचाया था।
खटीमा गोलीकांड के वीर शहीद
1 सितंबर 1994 को खटीमा में हुए गोलीकांड में खटीमा के सात राज्य आंदोलनकारियों ने राज्य निर्माण के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी।राज्य आंदोलन के दौरान हुए इस गोलीकांड में खटीमा इस्लामनगर निवासी सलीम, उमरुकला निवासी धर्मानंद भट्ट,रतनपुर निवासी गोपी चंद,राजीवनगर निवासी परमजीत सिंह,झनकट निवासी प्रताप सिंह व बरेली निवासी रामपाल शहीद हुए थे। इन शहीदों की शहादत के फलस्वरूप ही हम लोग पृथक उत्तराखण्ड की परिकल्पना को प्राप्त कर पाए। 1 सितम्बर के दिन भले ही इन शहीदों की शहादत को याद किया जाता हो लेकिन शहीदों के सपनो का उत्तराखण्ड आज भी कोशो दूर नजर आता है।
नही बन सका आजतक एक भव्य शहीद स्मारक
भले ही एक सितंबर 1994 को हुए खटीमा गोलीकांड की 25 वी बरसी मनाई जा रही हो लेकिन राज्य गठन के बाद आई तमाम सरकारे इन शहीदों के सम्मान में एक अदद भव्य शहीद स्मारक का निर्माण राज्य आंदोलन की धरती खटीमा में नही करा पाए।हालांकि खटीमा गोलीकांड के बाद लगातार इन 24 सालों में सरकार के प्रतिनिधि,मंत्री ,मुख्यमंत्रियों द्वारा दर्जनों बार खटीमा में भव्य शहीद स्मारक निर्माण की घोषणाये की गई हो।लेकिन इन घोषणाओं को धरातल पर उतारने का प्रयास किसी भी सरकार ने ईमानदारी के साथ नही किया। राज्य आंदोलन के शहीदों के सम्मान में एक शहीद स्मारक निर्माण की खटीमा की धरती आज भी बाट जोह रही है। इसके अलावा राज्य आंदोलन के दौरान 1 सितंबर 1994 को हजारो लोगो का नेतृत्व कर रहे कैप्टन शेर सिंह दिगारी, भगवान जोशी सरीखे वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी राज्य निर्माण के इतने सालों बाद भी अपने आप को ठगा महसूस कर रहे है। राज्य आंदोलन के दौरान उठाये गए तमाम कष्टों वेदनाओं को सहने वाले ये लोग अपनी परिकल्पनाओं के अनुसार सपने के उत्तराखण्ड को आज भी खुली आँखों से खोज रहे है।इनके अनुसार उत्तराखण्ड में पिछले 19 सालों में काबिज तमाम सरकारे उत्तराखण्ड की परिकल्पना के हिसाब से उत्तराखण्ड का विकास नही कर पाई। आज भी पहाड़ का युवा रोजगार के लिए भटक रहा है। पहाड़ का पानी व जवानी राज्य गठन के बाद भी काम नही आ पाई। राज्य के नीति नियंताओ ने अलग पर्वतीय राज्य की परिकल्पना के हिसाब से उत्तराखण्ड का वह विकास नही किया। जिसका सपना राज्य के शहीदों व हजारो राज्य आंदोलनकारियों ने कभी देखा था। वास्तव में आज भी उत्तराखण्ड के शहीद व राज्य आंदोलनकारी अपने सपनो के उत्तराखण्ड को अधूरा देख खुद को ठगा सा महसूस कर रहे है ၊


